Thursday, November 6, 2014

मेरे गीत

मेरे गीत हैं ऐसे 
की अरमानों की धुंधली सी  तस्वीर 
इनकी गूँज है वहाँ 
जहाँ है जल है, गगन है और है समीर 
सागर की लहरों की सरगम से 
मैंने सजाया है इनका रूप 
इनके हर कण में है बसी 
मेरे अनुभवों की छाँव और धूप 
जब-जब इन गीतों को मैंने गाया 
संग मेरे है मग्न हुया धरती का भी साया 
मदहोश हो हवाएँ खिलखिलाने लगीं 
चारों दिशाएँ भी इसे गले लगा अपनाने लगीं 
भीनी सी खुशबू छाने लगी देखो चारों ओर 
चुपके-चुपके आई फिर रात घनघोर 
संग मेरे गाने लगे चाँद और तारे 
आ बैठे पास मेरे प्रकृति के नज़ारे 
मैं खुश हूँ, बहुत खुश हूँ 
की मेरे गीत हैं ऐसे 
मेरी छवि, मेरी गति, खुद मेरी तकदीर ... 

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