
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से गुज़रते
वो सालों से थकते रस्ते पर
हर सुबह शाम धूल से खेलते क़दमों का
यूं सिमटता हुआ ज़िन्दगी का सफ़र
जहाँ पसीने की बूँद में गंध नहीं
सुगंध है तिनका तिनका जुड़ती खुशियों की
जहाँ हार-जीत सब एक समान
और हर लम्हें में आहट है चुनौतियों की
वो सिर्फ डब्बा नहीं है खाने का
उसमे सिमटी है कहीं ममता, कहीं प्यार
वो जहाँ शाम ढलते ठन्डे पानी का गिलास
है कराता गुदगुदाते अपनत्व का इज़हार
वो जहाँ जेब में इक दस का नोट
भी नयी उम्मीदों के लिए काफी है
वो जहाँ हर थकान भरे गुस्से में
रेशमी आँचल में लिपटी माफ़ी है
ये साधारण सी पंक्तियाँ सिर्फ साधारण हैं
और बात करतीं है कुछ आम सी
की आम आदमी की ज़िन्दगी कुछ ऐसी है
जहाँ छोटी छोटी खुशियाँ बिखरीं हैं बेनाम सी ........
No comments:
Post a Comment