Tuesday, November 4, 2014

आम आदमी


रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से गुज़रते 
वो सालों से थकते रस्ते पर 
हर सुबह शाम धूल  से खेलते क़दमों का 
यूं सिमटता हुआ ज़िन्दगी का सफ़र 
जहाँ पसीने की बूँद में गंध नहीं 
सुगंध है तिनका तिनका जुड़ती खुशियों की 
जहाँ हार-जीत सब एक समान 
और हर लम्हें में आहट है चुनौतियों की 
वो सिर्फ डब्बा नहीं है खाने का 
उसमे सिमटी है कहीं ममता, कहीं प्यार 
वो जहाँ शाम ढलते ठन्डे पानी का गिलास 
है कराता गुदगुदाते अपनत्व का इज़हार 
वो जहाँ जेब में इक दस का नोट 
भी नयी उम्मीदों के लिए काफी है 
वो जहाँ हर थकान भरे गुस्से में 
रेशमी आँचल में लिपटी माफ़ी है 
ये साधारण सी पंक्तियाँ सिर्फ साधारण हैं 
और बात करतीं है कुछ आम सी 
की आम आदमी की ज़िन्दगी कुछ ऐसी है 
जहाँ छोटी छोटी खुशियाँ बिखरीं हैं बेनाम सी ........

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