Tuesday, November 4, 2014

मेरा अंश


आज अचानक अपनी धड़कनों को,
किया महसूस  मैंने दो बार,
आँखों से मेरी खुशियों के आंसू
फूटने लगे क्यूँ बार बार।
ये कैसा अजब सा अहसास है
की जो छिपाए नहीं छिपता,
ये आज मेरे आँचल में प्यार का सागर
क्यूँ आज समेटे नहीं सिमटता। 
आज मुझे खुद मेरी ही पहचान
क्यूँ बदलती सी दिखने लगी,
आज मुझे हर खिलती सी कली
क्यूँ अपनी सी लगने लगी। 
हया की इक मद्धिम सी लहर
मन को क्यूँ गुदगुदाती है,
चुप सी रहती मेरी आवाज़
क्यों मन ही मन लोरियाँ सी गाती है। 
हर कदम पे आज
क्यूँ सँभालने को जी चाहता है,
सूना सा मेरा आँगन
आज खिलखिलाकर मुस्कुराता है। 
हर बढ़ते दिन के साथ
मेरी छवि मुझे बढ़ती सी नज़र आई
मेरी ममता के साये में मुझे महसूस हुई
आज मेरे अंश की परछाईं।

No comments:

Post a Comment