Thursday, November 6, 2014

मन की गहराई

झुकी नज़रें जब उठीं 
सामने था गहरा-नीला आसमां ,
चीरती हुयी जिसकी हवाएँ 
कर देतीं मन को गहरा ,
पूछतीं 
दिल की धड़कनें ऐसे 
मानो छूटी जातीं मन की गहराई, 
सागर तट पर आत्मा संग 
बैठा था ये अंग ,
 क्या कहूँ जब सागर लहरें 
प्रवेश करती मेरे इस मन में ,
कोना-कोना तब होता शीतल-पावन 
तब प्रवेश करता मेरा ये मन ,
गहरे बादलों में 
दूर तक ढूंढ़ती नज़रें ,
देखतीं जलतीं 
देख मन की गहराई ,
क्या सच कहती है आत्मा 
नहीं है गहरा सागर 
नहीं है गहरा आसमां 
बस गहरी है ये 
मन की गहराई ...

1 comment: