झुकी नज़रें जब उठीं
सामने था गहरा-नीला आसमां ,
चीरती हुयी जिसकी हवाएँ
कर देतीं मन को गहरा ,
पूछतीं
दिल की धड़कनें ऐसे
मानो छूटी जातीं मन की गहराई,
सागर तट पर आत्मा संग
बैठा था ये अंग ,
क्या कहूँ जब सागर लहरें
प्रवेश करती मेरे इस मन में ,
कोना-कोना तब होता शीतल-पावन
तब प्रवेश करता मेरा ये मन ,
गहरे बादलों में
दूर तक ढूंढ़ती नज़रें ,
देखतीं जलतीं
देख मन की गहराई ,
क्या सच कहती है आत्मा
नहीं है गहरा सागर
नहीं है गहरा आसमां
बस गहरी है ये
मन की गहराई ...
बहुत ही अच्छा लिखते हो जनाब लगे रहिये (Keep going so Inspirational and motivational)
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